मुझे यथार्थ से अधिक,,
प्रिय लगते हो,,
ख्वाबों वाले तुम।
तबीयत भर बाते करती हूं,,
रूठती हूं,,
लड़ती हूं,,
शिकायते लाख करती हूं।
पलट कर तुम,,
कोई उपेक्षित व्यवहार नहीं करते।
तुम्हारी कठोरता का,,
गिन गिन हिसाब लेती हूं,,
बड़ी तसल्ली से सुनते हो,,
सिर गिराए,,
मानो कोई अबोध,,
सुनता हो मा की फटकार।
जब वेदना के ज्वार से,
तपने लगती है आंखे,,
चूम लेते हो तब तब,,
मेरे रुदित नेत्र।
पता है,,
तुम सामने से अधिक अपने लगते हो,,
वहां,,
ख्यालों में।
मेरे बार बार कहने पे,,
चले जाओ यहां से।",
तुम नहीं जाते कहीं,,
मुझे अकेला छोर कर।
तुम समझते हो यथा स्थिति मेरी,,
बिना कहे ही।
फिर असीम प्रेम विभोर हो,,
मेरी ज़रूरत को समझते हुए।
आलिंगन में भर लेना।
जाने कैसे समझ लेते हो सब,,
वास्तविकता से परे,,
मुझे छोर नहीं जाते।।
सच मुच बहुत प्रिय लगते हो,,
ख्वाबों वाले तुम।
तुम्हारी कसम कहती हूं।।
बहुत प्रिय।।

🙏🙏
जवाब देंहटाएंFab ��
जवाब देंहटाएंExceptional
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