मैं अचेत पड़ी थी,,
भावात्मक युद्ध में,,
हारे हुए सिपाही की भांति।
वायु में बारूद घोल कर,,
इक मात्र चिंगारी को,,
उम्मीदी थी।
कहीं कहीं से,,
मानव चर्म के,,
जलने की गंध।
उस प्रदूषित वायु में,,
विष माफिक घुलता जा रहा था।
हृदय में शमशान वाला,,
भू तल,,
कई ज़िंदगियों को,,
आसमां की ओर प्रेषित करता था।
सांसे जलती चिताओं का,,
गर्म धुआं छोर रहा था।
मेरा अंतर,,
करुण गीत गुनगुना रहा था।
मुझे किसी औषधी की,,
चाह थी।
तुम्हारे आगमन में,,
विलंब,,
इस पूरे घटनाक्रम को,,
भयावह करता प्रतीत होता था।
आसमां के तारे,,
सांसे रोके,,
इस हृदय विदारत दृश्य को,,
देख रहे थे।
इक छोटा सा,,
हरा पत्ता मेरे आंखो पे आ पड़ा।
मैने तेरे मुक पदचाप को,,
अपनी धडकनों में,,
बहुत साफ सुना।
हा तुम आ रहे थे।।
तुम ही थे।।❤️

🙏🙏
जवाब देंहटाएंDekhkar aapko chaandni raat mein nadi ke tatt pe...deh gaya vo,ho gaya Achet!!
जवाब देंहटाएंmurcchit sa rehta hai,aapke sudod ango ki khevna mein...Kehta hai Jivani ho aap uski,ab toh aap hi Sanjivani ho..sparsh se apne kar do usse Sachet!!