चौकसी में लगे तेरे ख़्याल: एक प्रेम कविता | शायरी

मेरी चौकसी में लगे,,
तेरे ख़्याल।
मेरे बिस्तर का,,
नहीं छोड़ते सिरहाना।
मेरे भीतर के मौन रात में,,
झींगुर की आवाज़ से तुम,,
अक्सर मेरी गर्म सांसों को,,
काट आते हो चिकोटी।
मैं स्याह अंधियारे में,,
फिर ताकती हूं,,
तारों वाली काली चादर को।
अदद आशिक़ है वो भी,,
सो मेरे संग जागते है सारी रात।
लालटेन की मद्धिम सी रौशनी में,,
अपने हथेलियों में खींची,,
प्रेम वाली लकीर निहारते,,
उलाहती हूं।
पलकों के मुंदते ही,,
कुछ निर्मोही जुग्नुओं की फौज,,
टिमटिमाते आक्रमण करते है।
मानो मुझे चुरा लाने की,,
तुमसे सुपारी ले रखी हो।
बैठते ही मेरी हथेलियों पे,,
रसीद देते है,,
तेरे भेजे हुए चुम्बन।
खिड़कियों से झांकते,,
चुगलखोर सितारे,,
सब के सब,,
नहीं थकते मेरी मुखबिरी करते।
तुमसे प्रेम में,,
रातें और भी ज़ुल्मी जान पड़ती है।
सुनो,,
सुधर जाओ।
कहे देती हूं फिर अच्छा ना होगा।।

#बावरिया❤️


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